संघर्षकारी मंगल और राहु-केतु का योग(Angarak Yog ek Dosh)
संघर्षकारी मंगल और राहु का योग(Angarak Yog ek Dosh)
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राहु के नैसर्गिक गुण/अवगुण राहु जातक, सिर और चेहरे, छायादार, धुएँ, बदसूरत अजीब दिखने वाला, धुएँ के रंग का (नीला या काला) रंग, मनमोहक, तर्कहीन, तर्कशील, कर्कश, हठी, तामसिक स्वभाव का, सिपाही, नकली, कपटी, स्वार्थी, चालाक, चालाकी, भ्रम, भ्रम, धुँआ आदि विषयों का राहु कारक है। भ्रामक, स्वार्थी, जोखिम लेने वाला, वर्जित तोड़ने वाला, चालाक, विद्रोही, धुआं, जोड़ तोड़, चिंतनशील, महत्वाकांक्षी, भूखा, प्रवर्धक आदि।
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मंगल के नैसर्गिक गुण/अवगुण मंगल ग्रह अग्नि है, जो सभी ग्रहों में सबसे अधिक प्रबल है। यह क्षत्रिय (योद्धा), राशि का स्वामी मेष, वृश्चिक 1 और 8 वीं राशि का स्वामी, सेना पुरुष, अस्त्र और शस्त्र शौर्य, वीरता, क्रोध, भूमि के गुण, विवाद, षड्यंत्र, दुर्घटना, घाव, मर्दाना शक्ति, यंत्र, वैधानिकता और मुकदमेबाजी मंगल ग्रह से संबंधित और प्रतिनिधित्व वाले सभी विषय हैं। आक्रामक, गर्म स्वभाव, योद्धा, साहस, भाईचारा, दुर्घटना, तेज बुखार, रक्तचाप, कार्रवाई, सर्जक, जुनून, इच्छा, आवेगी, ज्वालामुखी विस्फोट आदि। (Angarak Yog ek Dosh)
जब राहु और मंगल एक ही भाव में युति बनाते हैं, तो वह मंगल राहु अंगारक योग कहलाता है। मंगल ऊर्जा का स्रोत है, जो अग्नि तत्व से संबद्घ है, जबकि राहु भ्रम व नकारात्मक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। जब दोनों ग्रह एक ही भाव में एकत्र होते हैं तो उनकी शक्ति पहले से अधिक हो जाती है।
ज्योतिष में मंगल को क्रोध, वाद विवाद, लड़ाई झगड़ा, हथियार, दुर्घटना, एक्सीडेंट, अग्नि, विद्युत आदि का कारक ग्रह माना गया है तथा राहु को आकस्मिकता, आकस्मिक घटनाएं, शत्रु, षड़यंत्र, नकारात्मक ऊर्जा, तामसिकता, बुरे विचार, छल, और बुरी आदतों का
कारक ग्रह माना गया है, इसलिए फलित ज्योतिष में मंगल और राहु के योग को बाहुत नकारात्मक और उठापटक कराने वाला योग माना गया है मंगल और राहु स्वतंत्र रूप से अलग अलग इतने नकारात्मक नहीं होते पर जब मंगल और राहु का योग होता है तो इससे मंगल और राहु की नकारात्मक प्रचंडता बहुत बढ़ जाती है जिस कारण यह योग विध्वंसकारी प्रभाव दिखाता है, मंगल राहु का योग प्राकृतिक और सामाजिक उठापटक की स्थिति तो बनाता ही है पर व्यक्तिगत रूप से भी मंगल राहु का योग नकारात्मक परिणाम देने वाला ही होता है। (Angarak Yog ek Dosh)
यदि जन्मकुंडली में मंगल और राहु एक साथ हो अर्थात कुंडली में मंगल राहु का योग हो तो सर्वप्रथम तो कुंडली के जिस भाव में यह योग बन रहा हो उस भाव को पीड़ित करता है और उस भाव से नियंत्रित होने वाले घटकों में संघर्ष की स्थिति बनी रहती है उदाहरण के लिए यदि कुंडली के लग्न भाव में मंगल राहु का योग हो तो ऐसे में स्वास्थ पक्ष की और से हमेशा कोई न कोई समस्या लगी रहेगी, धन भाव में मंगल राहु का योग होने पर आर्थिक संघर्ष और क़ुतुब के सुख में कमी होगी इसी प्रकार पंचम भाव में मंगल राहु का योग शिक्षा और संतान पक्ष को बाधित करेगा।
इसके अलावा कुंडली में मंगल राहु का योग होने से व्यक्ति का क्रोध विध्वंसकारी होता है, समान्य रूप से तो प्रत्येक व्यक्ति को क्रोध आता है पर कुंडली में राहु मंगल का योग होने पर व्यक्ति का क्रोध बहुत प्रचंड स्थिति में होता है और व्यक्ति अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर पाता और बहुत बार क्रोध में बड़े गलत कदम उठा बैठता है, कुंडली में मंगल राहु का योग होने पर जीवन में दुर्घटनाओं की अधिकता होती है और कई बार दुर्घटना या एक्सीडेंट का सामना करना पड़ता है कुंडली में मंगल राहु का योग होने पर व्यक्ति को वहां चलाने में भी सावधानी बरतनी चाहिए , कुंडली में मंगल राहु का योग होने पर व्यक्ति को शत्रु और विरोधियों की और से भी बहुत समस्याएं रहती है और जीवन में वाद विवाद तथा झगड़ों की अधिकता होती है, कुंडली में मंगल राहु का योग बड़े भाई के सुख में कमी या वैचारिक मतभेद उत्पन्न करता है और मंगल राहु के योग के नकारात्मक परिणाम के कारण ही व्यक्ति को जीवन में कर्ज की समस्या का भी सामना करना पड़ता है, इसके अलावा यदि स्त्री जातक की कुंडली में मंगल राहु का योग हो तो वैवाहिक जीवन को बिगड़ता है स्त्री की कुंडली में मंगल पति और मांगल्य का प्रतिनिधि ग्रह होता है और राहु से पीड़ित होने के कारण ऐसे में पति सुख में कमी या वैवाहिक जीवन में संघर्ष की स्थिति बनी रहती है, जिन लोगो की कुंडली में मंगल राहु का योग होता है उन्हें अक्सर जमीन जायदात से जुडी समस्याएं भी परेशान करती हैं इसके अलावा मंगल राहु का योग हाई बी.पी. मांसपेशियों की समस्या, एसिडिटी, अग्नि और विद्युत दुर्घटना जैसी समस्याएं भी उत्पन्न करता है l
संघर्षकारी मंगल और केतु का योग (Angarak Yog ek Dosh)
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ज्योतिष शास्त्र में जब दो ग्रहों का प्रभाव एक जैसा हो तो उस प्रभाव की मिलने की सम्भावनाये बढ जाती हैं। इसी नियम के अधार पर ज्योतिष के समस्त योगों का निर्माण होता है। योग चाहे शुभ हो या अशुभ कारण यही नियम होगा। इस नियम के अनुसार जब किसी वस्तु, तत्व या गुण का प्रतिनिधित्व करने वाले दो ग्रह(ग्रह-भाव) का सयुंक्त प्रभाव एक साथ पडें तो उन के प्रभाव पर दोहरा बल काम करता है। यह नियम ग्रह बल तथा भाव के बल पर भी निर्भर करता है। जैसे शुक्र गुरु का सम्बंध, परस्पर एक दूसरे के विपरीत होने पर भी यें जातक को अत्यधिक विद्वान बनाते हैं, कारण स्पष्ट है कि इन दोनो ही ग्रहों को गुरु का पद प्राप्त है। इसी तरह अंगारक योग भी काम करता है।(Angarak Yog ek Dosh)मंगल तथा केतु की युक्ति अंगारक योग कहलाती है। यह अंगारक योग केतु व मंगल के सन्युक्त प्रभाव से बनता है। मंगल का दूसरा नाम अंगारक है। मंगल तिक्ष्ण, क्रूर, मारक क्षमता से युक्त ग्रह हैं। मंगल का जन्म कुंडली में अकेला प्रभाव भी हानिकारक हैं। जैसा की आपको ज्ञात है कि मंगल की विशेष भावों में स्थिति मंगल दोष को उत्पन्न करती है। मंगल जन्म कुंडली में सर्वाधिक पीडादायक ग्रह होता है। मंगल के समान ही केतु भी कष्ट दायक ग्रह होता है।(Angarak Yog ek Dosh)इसीलिये ज्योतिष शास्त्र मे मंगल के समान केतु कहा जाता है। इन दोनो का जन्म कुंडली में सन्युक्त प्रभाव मंगल की दोगुणी ताकत के समान होता है। जिस भाव में यह स्थिति बनेगी उस भाव जनित फलों को इनके प्रभाव से होकर गुजरना ही पडेगा।अंगारक योग में सबसे ज्यादा अग्नि व क्रोधात्मक प्रभाव देखने को मिलता
अंगारक दोष व्यक्ति, उसके गुस्से और उसके निर्णय के इर्द-गिर्द घूमता है। इस दोष के बुरे प्रभाव मिलने का एक बडा कारण इस योग के प्रभावों को न समझ पाना है।इस योग की अनदेखी के परिणामस्वरूप यह दोष और भी हानिकारक होता है। अंदर ही अंदर सुलगती यह अग्नि एकदिन प्रचंड रूप धारण कर लेती है। अंगारक योग के कारण, क्रोध, अग्निभय, दुर्घटना, ब्लड से सम्बंधीत रोग, और स्किन की समस्यायें मुख्य रूप से होती है।
सामान्य उपाय
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राहु मंगल युति का भाव अनुसार अलग अलग फल मिलता है उसी के अनुसार उपाय किये जायें तो परिणाम ज्यादा बेहतर मिलते है इसके लिये कुंडली का अध्ययन करना आवश्यक है फिर भी हम पाठको के लिये कुछ सामान्य उपाय बता रहे है आशा करते है इनको करने से आप लाभान्वित होंगे।
तो यहाँ हमने देखा की मंगल और राहु का योग किस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करता है यदि कुंडली में मंगल राहु के योग के कारण समस्याएं उत्पन्न हो रही हो तो निम्नलिखित उपाय लाभकारी होंगे –
1. ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें।
2. हनुमान चालीसा का पाठ करें।
3. प्रत्येक शनिवार को साबुत उडद का दान करें।
4. प्रत्येक मंगलवार को गाय को गुड़ खिलाएं।
5. प्रतिदिन मस्तक पर सफ़ेद चन्दन का तिलक लगाएं।
6. शनिवार एवं बुधवार के दिन सूर्योदय से ढाई घंटे के अंदर सतनाजा (7 मुट्ठी सप्तधान्य) और सवा किलो कच्चा कोयला सर से 11 बार उसारकर बहते जल में प्रवाहित करें।
।। श्री हनुमते नमः।।
Prashna Kundli by Acharya Arya