शनि साढे साती, प्रभाव एवं उपचार (Saturn Sade Sati, effects & remedies)
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साढ़े साती के प्रति लोगों के हृदय में डर की भावना बनी हुई है। साढ़े साती (Shani Sadhe Sati) के दौरान माना जाता है कि व्यक्ति को निराशा, असंतोष, विवाद, कलह और विपरीत परिणामों का सामना करना होता है, परंतु पूरी तरह से इसे स्वीकार करना सही नहीं है।
साढ़े साती क्या है (What is Shani Sade Sati)
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार साढ़े साती तब बनती है जब शनि गोचर में जन्म चन्द्र से प्रथम, द्वितीय और द्वादश भाव से गुजरता है। शनि एक राशि से गुजरने में ढ़ाई वर्ष का समय लेता है इस तरह तीन राशियों से गुजरते हुए यह साढ़े सात वर्ष का समय लेता है जो साढ़े साती कही जाती है। सामान्य अर्थ में साढ़े साती का अर्थ हुआ सात वर्ष छ: मास।
साढ़े साती (Shani Sadhe Sati) के दौरान माना जाता है कि व्यक्ति को निराशा, असंतोष, विवाद, कलह और विपरीत परिणामों का सामना करना होता है, परंतु पूरी तरह से इसे स्वीकार करना सही नहीं है। साढ़े साती (Shani Sadhe Sati) सभी के लिए बुरा परिणाम लाता है ऐसा नहीं है। उदाहरणस्वरूप अगर शनि योग कारक है तो इस बात की कोई संभावना नहीं बनती कि शनि व्यक्ति को परेशान करेगा। अधिकतर लोगों को साढ़े साती के तीन चरणों से गुजरना होता है चौथा चरण का सामना बहुत कम लोगों को करना होता है। राशि चक्र में साढ़े साती फिर से लौट कर तब आती है जब पहली साढ़े साती के 25 वर्ष पूरे हो जाते हैं।
साढ़े साती का प्रभाव (Effects of Shani Sade Sati)
यह सही है कि साढ़े साती के समय व्यक्ति को कठिनाईयों एवं परेशानियों का सामना करना होता है परंतु इसमें घबराने वाली बात नहीं हैं। इसमे कठिनाई और मुश्किल हालत जरूर आते हैं परंतु इस दौरान व्यक्ति को कामयाबी भी मिलती है। बहुत से व्यक्ति साढ़े साती के प्रभाव से सफलता की उंचाईयों पर पहुंच जाते हैं। साढ़े साती व्यक्ति को कर्मशील बनाता है और उसे कर्म की ओर ले जाता है। हठी, अभिमानी और कठोर व्यक्तियों से यह काफी मेहनत करवाता है।
साढ़े साती के तीन चरण (Three steps of Shani Sade Sati)
- साढ़े साती का पहला चरण (First step of Shani Sadhe Sati) नज़दीकी रिश्तेदारों और जातक को प्रभावित करता है.
- साढ़े साती का दूसरा चरण (Second step of Shani Sadhe Sati) चरण व्यापार और गृहस्थी को प्रभावित करता है।
- साढ़े साती का तीसरा चरण (Third step of Shani Sadhe Sati) चरण बच्चों, परिवार, स्वास्थ्य को प्रभावित करता है इस चरण में मृत्यु तुल्य कष्ट की अनुभूति होती है.
परंतु किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पूर्व ज्योतिषाचार्यों को इन विषयों पर ध्यान देना चाहिए।शनि जन्म कुण्डली में शुभ हैं अथवा अशुभ, दशा कौन सी चल रही है और उसमें शनि की स्थिति कैसी है। क्या गोचर में शनि वृहस्पति से वेध हो रहा है। जन्म कुण्डली में नक्षत्रों पर शनि का क्या प्रभाव है। कितने ग्रह कोण और केन्द्र में शुभ स्थिति में हैं तथा लग्न और लग्नेश की दशा कैसी है। इन स्थितियों के आंकलन के आधार पर ही शनि के अच्छे बुरे प्रभाव को जाना जा सकता है।
शनि के प्रथम चरण का प्रभाव (Effects of 1st Step of Shani Sade Sati)
प्रथम चरण में शनि जब चन्द्रमा से 12 वें भाव में गुजरता है तब ढाई वर्ष में जो परिणाम होते हैं वह इस प्रकार हैं। इस क्रम में व्यक्ति के माता पिता एवं नज़दीकी सम्बन्धियों को एवं स्वयं भी अशुभ परिणाम भुगतना होता है। इस दौरान आंखों में पीड़ा की अनुभूति होती है। इस अवस्था में शनि तीसरी दृष्टि से 2 भाव को देखता है जिससे आर्थिक परेशानी महसूस होती है। इस चरण में दशम दृष्टि से नवम भाव को देखने से कार्यों में बाधा महसूस होती है और व्यक्ति के पिता को भी कष्ट की अनुभूति होती है।
शनि के द्वितीय चरण का प्रभाव (Effects of 2nd Step of Shani Sade Sati)
इस चरण में शनि द्वारा सप्तम भाव को सप्तम दृष्टि से देखने के कारण गृहस्थी में और दशम भाव को दशम दृष्टि से देखने के कारण व्यावसायिक क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना होता है। इस स्थिति में आर्थिक तंगी, स्वास्थ्य में गिरावट, परिवार में विभाजन, दोस्तों से अनबन, अनावश्यक खर्च में वृद्धि, मानहानि, आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की कमी होती है। लेकिन यह तमाम स्थिति तभी आती है जब शनि जन्म कुण्डली में पूरी तरह अशुभ हो अन्यथा इस चरण में व्यक्ति को मिला जुला फल प्राप्त होता है।
शनि के तृतीय चरण का प्रभाव: (Effects of 3rd Step of Shani Sade Sati)
तृतीय चरण के दौरान जब शनि गोचर में चन्द्रमा से द्वितीय भाव में आता है तब यह व्यक्ति एवं बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। जीवन के अंतिम दिनों में शनि की यह स्थिति मौत को निमंत्रण देती है। चतुर्थ भाव में शनि की दृष्टि होने से धन की हानि, खर्च में वृद्धि, स्वास्थ्य में गिरावट और परिवार में कलह को जन्म देती है।साढ़े साती के प्रति लोगों के हृदय में डर की भावना बनी हुई है। साढ़े साती (Shani Sadhe Sati) के दौरान माना जाता है कि व्यक्ति को निराशा, असंतोष, विवाद, कलह और विपरीत परिणामों का सामना करना होता है, परंतु पूरी तरह से इसे स्वीकार करना सही नहीं है।
साढ़े साती का उपाय (Remedies of Shani Sade Sati)
साढ़े की परेशानी से बचने के लिए नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इस ग्रह दशा से बचने के लिए काले घोड़े की नाल की अंगूठी बनाकर उसे दाएं हाथ की मध्यमा उंगली में पहनना चाहिए। शनि देव को शनिवार के दिन सरसों का तेल और तांबा भेट करना चाहिए। अगर आप रत्न धारण करना चाहते हैं तो किसी अच्छे ज्योतिषशास्त्री से सम्पर्क करें और उनकी सलाह से रत्न धारण करें।
शनि को हिन्दु धर्मशास्त्र में सूर्य देव का पुत्र कहा गया है। यह हमेंशा अशुभ परिणाम ही नहीं देते हैं। शनि ग्रह से सम्बन्धित फलादेश करते समय विशेष सावधानी की रखनी चाहिए और तब देखना चाहिए कि क्या साढ़े साती सचमुच अशुभ फलदायी है।