राहु पूर्व जन्मों के कर्म बंधन को दर्शाता है। राहु जिस ग्रह के साथ युति में होता है वैसा ही कर्मबंधन अर्थात दोष होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राहु शीर्ष है। शरीर की अन्य इंद्रियों के अभाव के चलते इसमें अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता है, इसलिए इसे यह धर्म के विपरीत कार्य करता है। आत्मा व परमात्मा के विषय में इसकी रूचि नहीं है, इसके उलट यह माया का दास है। सामान्य रूप से लोगों में यह मान्यता है कि राहु हमेशा ही जातक को खराब फल देता है। राहु-केतु, चंद्र तथा अन्य ग्रहों के क्रांतिवृत्त पर भ्रमण नहीं करता, पर क्रांतिवृत्त के साथ जुड़ाव रखते हुए यह भ्रमण करता है। यह परिक्रमण के दौरान क्रांतिवृत्त के बिंदु को काटता है। चंद्र नीचे से ऊपर आते समय जिस बिंदु पर काटता है उस कटान बिंदु को राहु कहा जाता है और ऊपर से नीचे जाने की ओर जिस बिंदु पर काटता है उस कटान बिंदु को केतु कहते हैं। सार रूप में कहें तो राहु-केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता है। पर इन्हें फलित ज्योतिष में काफी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
जीव की हर एक तृष्णा का कारक राहु कहलाता है। युद्ध में लड़कर महावीर कहलाने वाले, वीर चक्र प्राप्त करने वाले और युद्ध प्रेमी जातकों की कुंडली में राहु बलवान होता है। यह स्वतंत्रता का अभिलाषी होता है। केवल अपना मतलब साधने के लिए हर एक व्यक्ति के साथ यह संबंध बनाता है। राहु अक्सर लोगों का आवास, उद्देश्य और मित्रों में परिवर्तन लाता है। इसमें स्वार्थ की भावना अधिक होने से यह शत्रुता में बढ़ोत्तरी करता है। दुश्मन, रोग और उधारी ये तीनों ही राहु के मुख्य गुण हैं। राहु का प्रभाव जिन पर होता है वे मंगल जैसे जोशीले नहीं होते, बल्कि आत्मविश्वास से भरपूर, बहादुर और निडर होते हैं। इस तरह का गुण रखने वाले राहु का कलयुग में प्रभाव बढ़ जाता है। राहु पृथ्वी के गूढ़ तत्व, रहस्यों और अगोचर दुनिया की जानकारी देता है। राहु जब बुध की राशि में होता है तब अधिक बलशाली हो जाता है। राहु-केतु पारगमन रिपोर्ट से जानें, राहु-केतु का गोचर अापके जीवन को किस तरह प्रभावित करेगा।
राहु कन्या राशि में बलवान होता है। राहु की खुद की कोई राशि नहीं होती, इसलिए वह जिस भी स्थान में होता है उस स्थान के अधिपति जैसा ही फल देता है। यदि राहु अकेला ही केंद्र या त्रिकोण में बैठा हो और वह केंद्र या त्रिकोण के स्वामी के साथ युति करता है तो योगकारक बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु 3, 6 व 11वें भाव में बलवान बनता है। अगर राहु जातक की कुंडली में शुभता प्रदान करने वाले स्वामी के साथ युति करता है या उपस्थित होता है तो वह जातक की दशा-अंतर्दशा में भी शुभ फल दिलाता है। राहु जिस ग्रह के साथ होता है वह उस ग्रह की प्रवृत्ति में विकृति लाता है। जहां शुक्र-राहु की युति जातक को कामुक बनाती हैं, वहीं इसकी गुरु के साथ युति गुरु चांडाल योग को जन्म देती है। हालांकि, गुरु व शुक्र जिस भाव के स्वामी होते है उसके अनुसार ही लाभ या नुकसान देते हैं। राहु-मंगल का वृश्चिक राशि से संबंध एक प्रकार का विषेला संबंध बनाता है जिसकी वजह से अफीम, गांजे, शराब और चरस जैसी वस्तुओं पर राहु का प्रभाव होता है। एेसे धंधे में राहु फायदा कराता है। राहु अगर शुभ बुध के साथ होता है तो वह जातक को एक अच्छा व्यापारी व वैज्ञानिक भी बनाता है। हालांकि, अशुभ स्थान पर स्थित बुध जातक के लिए अशुभ परिणाम लाता है।
राहु कुंडली के 6-8-12 के स्वामी के साथ अथवा 6-8-12 वें भाव में अशुभ फल देता है। राहु के ज्ञान के भी कारक कहलाने से यदि यह पाप ग्रहों की संगत में होता है तो मंद बुद्धि या पागलपन की स्थिति पैदा कर सकता है। इस तरह से यह कहा जा सकता है कि राहु हर इंसान की कुंडली में भिन्न-भिन्न प्रकार का फल प्रदान करता है। इसलिए, ज्योतिषियों को राहु-केतु के फलकथन करने से पहले कुंडली का विस्तार से अध्ययन कर लेना चाहिए।
यदि कुंडली में राहु की स्थिति शुभ बनती हो और व्यक्ति राहु की कारक चीजों का ही काम करता है तो राहु की दशा -अंतर्दशा के दौरान व्यक्ति सफलता व प्रगति के शिखर को छूता है। हमारी एक्सक्लूजिव राहु-केतु ट्रांजिट रिपोर्ट कैरियर के लिए का लाभ उठाए आैर जानें राहु-केतु का गोचर आपके कैरियर पर क्या प्रभाव ड़ालेगा।
शुभ ग्रह के साथ राहु की युति जातक को शुभ फल देती है-
– राहु का शुभ सूर्य के साथ अथवा सूर्य के नक्षत्र में होना राजयोग जैसा फल देता है।
– जातक की कुंडली में राहु के शुभ चंद्र या चंद्र के नक्षत्र में होने पर जातक खेतीबाड़ी में सफलता प्राप्त करता है। इसके अलावा, राहु आमदनी में भी वृद्धि कराता है। यह समुद्री यात्राओं के योग बनाता है।
– अगर राहु, शुभ मंगल या मंगल के नक्षत्र में हो तो व्यक्ति जेलर की नौकरी पाता है। मंगल के कारकत्व वाले क्षेत्रों में भी यह शुभ फल देता है।
– बुध के नक्षत्र या शुभ बुध के साथ होने पर राहु व्यापार में विकास, मैनेजमेंट या उच्च शिक्षा से जुड़ी कोई पदवी दिलाता है।
– शुभ गुरु के साथ या गुरु के नक्षत्र में राहु हो तो एेसी ग्रह स्थिति के आशीर्वाद के फलस्वरूप जातक चुनाव में जीत हासिल करता है। जातक को संतान सुख का सौभाग्य मिलता है और वह आध्यात्मिक कार्यों में अधिक रूचि रखता है।
– शुभ फलदायी शुक्र के साथ या उसके नक्षत्र में राहु की उपस्थिति शुभ फल देती है। कुंडली के लग्न में होने से जातक को सुंदर बनाता है। एेसा जातक कलाप्रेमी होने के अतिरिक्त कलाक्षेत्र में भी अधिक कार्यरत होता है।
– शुभ शनि या उसके नक्षत्र में राहु हो तो सामान्य रूप से श्रापित दोष बनने से उस भाव का फल नहीं देता है। फिर भी यदि शनि की स्थिति शुभ होने पर जातक को टेक्निकल और व्यापारिक क्षेत्रों में तो शुभ फल देता है, पर उसकी मानसिक शांति हर लेता है यानी जातक मानसिक अशांति व बेचैनी का अनुभव करता है।
– राहु-केतु यदि अपने नक्षत्र में हो और वे शुभ स्थान में बैठे हों तो जातकों को शुभ फल देते हैं।
दुनिया में एेसे कई लोकप्रिय व्यक्ति या हस्ती हैं जिन्होंने राहु की दशा और अंतर्दशा में अपने जीवन में खूब ख्याति व सफलता प्राप्त की है। एेसा कहा जाता है कि यदि योगकारक ग्रह कमजोर हो तो वे अपनी दशा में जातक को अशुभ फल देते हैं, परंतु यदि इसी कुंडली में राहु एेसे ग्रह का यदि प्रतिनिधित्व कर रहा हो तो राहु की दशा जातक के लिए उस समय फलदायी हो जाती है। इसके सबसे जीवंत उदाहरण है रोहित शर्मा। रोहित की कुंडली में राहु त्रिकोण भाव व नवम भाव में भाग्येश गुरु और लाभेश शुक्र के साथ युति बनाता है। इस युति के प्रताप से ही एक सामान्य परिवार में पले-बड़े रोहित शर्मा ने अपने प्रोफेशनल करियर की शुरूआत राहु की महादशा में करते हुए क्रिकेट में अनेक सिद्धियां सर करते हुए सफलता की चोटी पर पहुंच गए हैं।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि राहु हमेशा अशुभ फल ही नहीं देता है। यदि यह जातक की कुंडली में बलवान या योगकारक हो जाता है तो जातक की अनेकों आकांक्षाओं को पूरा करके उसके जीवन को सफल व सुखमय बना देता है।
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