मांगलिक दोष
आज के समाज में जहाँ एक ओर ज्योतिष के नकारने वालों की संख्या बढ़ी हैं , वही आश्चर्यजनक ढंग से ज्योतिष को मानने वालों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुयी हैं . जब आप ज्योतिष के चमत्कारों को खुद महसूस करते हैं तो आपका मन ज्योतिष को मानने पर मजबूर होता हैं और साथ ही साथ ज्योतिष के प्रति आपकी श्रद्धा को भी बढ़ाता हैं . ज्योतिष को लेकर तमाम भ्राँतिया मौजूद हैं , जिसका लाभ ढोंगी और पाखंडी ज्योतिषी उठाते हैं, हमारा यह प्रयास है की आप मांगलिक दोष के बारे में जाने और तब उसके अनुसार अपना फैसला ले .
शनि के बाद मंगल ही ऐसा ग्रह हैं जो आपको ख़ुश होने पर अतिशुभ फल देगा और क्रुद्ध होने पर सब कुछ हर लेगा . हम मंगल देव को ना पूरी तरह पोषक , ना पूरी तरह विनाशक कह सकते हैं . जातक की कुंडली में मंगल की परोस्थिति का असर जातक को ताउम्र भोगना पड़ता हैं.
कुंडली मिलान में मंगल पर ध्यान
विवाह में कुंडली के मिलान में तीन सबसे महत्वपूर्ण बाते होती हैं –
* नाड़ी दोष ना हो
* मांगलिक दोष या तो दोनों में ना हो या दोनों में हो
* गुण १६ से अधिक मिलते हो
इसका ये मतलब हैं की विवाह के समय वर कन्या की कुंडली मिलान में मांगलिक दोष का विचार बहुत ही महत्वपूर्ण हैं .
ऐसा माना जाता हैं की जिस वर या कन्या की कुंडली में मांगलिक दोष हैं , उसे किसी मांगलिक से ही विवाह करना चाहिए. मांगलिक का मांगलिक से विवाह अति उत्तम और शुभ फलदायक हैं .
लेकिन अगर मांगलिक का विवाह गैर मांगलिक से हो जाए तो हो सकता हैं – वैवाहिक जीवन में अड़चने आये , तलाक़ की या झगड़े की स्तिति हो , गैर मांगलिक जीवन साथी की आयु कम हो जाए .
मांगलिक दोष पर विशेष ध्यान देने से पहले ये याद रखे की यदि वर या कन्या का विवाह २८ साल के आयु के बाद हो रहा हैं तो मांगलिक दोष का प्रभाव नहीं या आंशिक पड़ता हैं . आज के समाज में जहाँ विवाह देर से हो रहा हैं , वह बहुत संभव हैं की वर या कन्या २८ साल के बाद ही विवाह करे .
क्या होता हैं मांगलिक दोष?
जहां एक ओर मंगल की स्थिति से रोजी रोजगार एवं कारोबार मे उन्नति और प्रगति होती है तो दूसरी ओर इसकी उपस्थिति वैवाहिक जीवन के सुख बाधा डालती है.
कुण्डली में जब प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब मंगलिक दोष (manglik dosha)लगता है. लेकिन सिर्फ इतने से ही मांगलिक दोष नहीं माना जाता , कुंडली में कुछ ऐसी परिस्थितियां होती हैं , जिनके रहते हुए मंगल दोष होते हुए भी नहीं माना जाता . हमने आगे के टॉपिक में ऐसी स्थिति की व्याख्या की हैं .
कुण्डली में चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष अथवा कर्क राशि के साथ योग बनाता है तो मंगली दोष लगता है .
इस दोष को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है. यह दोष जिनकी कुण्डली में हो उन्हें मंगली जीवनसाथी ही तलाश करनी चाहिए ऐसी मान्यता है. सातवाँ भाव जीवन साथी एवम गृहस्थ सुख का है. इन भावों में स्थित मंगल अपनी दृष्टि या स्थिति से सप्तम भाव अर्थात गृहस्थ सुख को हानि पहुँचाता है ज्योतिशास्त्र में कुछ नियम (astrological principles)बताए गये हैं जिससे वैवाहिक जीवन में मांगलिक दोष नहीं लगता है