लग्न का राहु
लग्न में यदि राहु हो तो जातक वहमी हो जाता है, शक करने की आदत हो जाती है, यदि कोई शख्श जातक को कुछ सही राह या बात बताता है तो उसकी बात भी जातक को झूठी लगने लगती है मन में बस यही सोचता रहता है कि अमुक शख्श कहीं मुझे फंसा तो नहीं रहा है। मन नकारात्मक बातों का घर बन जाता है। व्यक्ति कामुक स्वभाव का हो जाता है या परस्त्री की तरफ झुकाव अधिक होता है। वैवाहिक जीवन में क्लेश और तनाव की स्थिति रहती है, रात को सपने भी डरावने आते हैं, जातक के बने बनाये काम 99 परसेंट पर आकर खराब हो जाते हैं या फिर काम बनते ही नहीं, दिमागी बीमारी से ग्रस्त रहता है जैसे कि मैं मर न जाऊं, यदि सफर कर रहा हो तो मन में विचार आना कि कहीं एक्सीडेंट न हो जाये या बस खाई में न गिर जाए।
पेट की खराबी ज्यादा होती है गैस की दिक्कत, अम्लता जो कि चेस्ट में प्रेसर करती है और कभी कभी ऐसा लगता है कि अटैक आने वाला है… घबराहट होती है, बेचैनी भी लेकिन फिर पता चलता है कि वो तो गैस , एसिडिटी का कमाल था। लग्न में राहु पूर्ण दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है जिस कारण वैवाहिक जीवन में भी उठा पटक लगी रहती है पति पत्नी में वैचारिक मतभेद, दोषारोपण आदि।
जातक को लगता है कि किसी चीज ने उसे जकड़ रखी है या उस पर किसी ने जादू टोना कर रखा है जबकि ऐसा कुछ नहीं होता।
जातक या तो नौकरी बार-बार नौकरी बदलता रहता है या फिर हर बार नौकरी बदलता रहता है।
जातक के कारण घर में हर बार क्लेश की स्थिति रहती है या फिर बार बार जातक पर दोषारोपण होता रहता है।
संतान को भी कष्ट या बीमारी आदि लगी रहती है। ससुराल से भी कष्ट या तनाव झगड़ा।
यदि राहु की दशा/अंतर हो तो कष्ट बढ़ जाते हैं।
मानसिक तनाव, पेट फूलना, मन में नकारात्मक विचार अधिक आना, परिवार में तनाव, नौकरी का छूटना, किसी स्त्री द्वारा आरोप प्रत्यारोप लगाना आदि।