राहू-केतु जिस तरह गुरु के साथ चांडाल योग बनाते है इसी तरह अन्य ग्रहों के साथ चांडाल योग बनाते है जो निम्न प्रकार के है–
1) रवि-चांडाल योग : सूर्य के साथ राहू या केतु हो तो इसे रवि चांडाल योग कहते है। इस युति को सूर्य ग्रहण योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक गुस्सेवाला और जिद्दी होता है। उसे शारीरिक कष्ठ भी भुगतना पड़ता है। पिता के साथ मतभेद रहता है और संबंध अच्छे नहीं होते। पिता की तबीयत भी अच्छी नहीं रहती।
2) चन्द्र-चांडाल योग : चन्द्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चांडाल योग कहते है। इस युति को चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नहीं भोग पाता। माता संबंधी भी अशुभ फल मिलता है। नास्तिक होने की भी संभावना होती है।
3) भौम-चांडाल योग : मंगल के साथ राहू या केतु हो तो इसे भौम चांडाल योग कहते है। इस युति को अंगारक योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक क्रोधी, जल्दबाज, निर्दय और गुनाखोर होता है। स्वार्थी स्वभाव, धीरज न रखनेवाला होता है। आत्महत्या या अकस्मात् की संभावना भी होती है।
4) बुध-चांडाल योग : बुध के साथ राहू या केतु हो तो इसे बुध चांडाल योग कहते है। बुद्धि और चातुर्य के ग्रह के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानी पहुचती है। और जातक अधर्मी। धोखेबाज और चोरवृति वाला होता है।
5) गुरु-चांडाल योग : गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु चांडाल योग कहते है।ऐसा जातक नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा न रखनेवाला और नहीं करने जेसे कार्य करनेवाला होता है।
6) भृगु-चांडाल योग : शुक्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे भृगु चांडाल योग कहते है। इस योग में जन्म लेनेवाले जातक का जातीय चारित्र शंकास्पद होता है। वैवाहिक जीवन में भी काफी परेशानिया रहती है। विधुर या विधवा होने की सम्भावना भी होती है।
7) शनि-चांडाल योग : शनि के साथ राहू या केतु हो तो इसे शनि चांडाल योग कहते है। इस युति को श्रापित योग भी कहा जाता है। यह चांडाल योग भौम चांडाल योग जेसा ही अशुभ फल देता है। जातक झगढ़ाखोर, स्वार्थी और मुर्ख होता है। ऐसे जातक की वाणी और व्यव्हार में विवेक नहीं होता। यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ भी इशारा करता है।
इन उपायों से भी होगा चांडाल दोष में लाभ–
—योग्य गुरु की शरण में जाएँ, अपने गुरु की निस्वार्थ भाव से सेवा करें और आशीर्वाद प्राप्त करें। स्वयं हल्दी और केसर का टीका लगाएँ।
—निर्धन विद्यार्थियों को अध्ययन में सहायता करें।
—-राहु ग्रह का जप-दान करने से लाभ होगा।
—गाय को भोजन कराएं एवं नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करें।
—-कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय बड़ों की राय अवश्य लें।
—अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें एवं प्रसन्न रहें।
—बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करें और अपने माता-पिता का आदर करें।
—नियमित रूप से स्वयं हल्दी और केसर का टीका लगाने से लाभ होगा।
—भगवान गणेश और देवी सरस्वती की आराधना करें और मंत्र का जाप करें।
—-बरगद के वृक्ष में कच्चा दूध डालें और केले के वृक्ष का भी पूजन करें।