प्रथम भाव- इस भाव का कारक सूर्य है। यह सबसे प्रमुख भाव है। इसी भाव की राशि, इसमें बैठे ग्रह और इसके अधिपति ग्रह की स्थिति से जातक की स्थिति की प्राथमिक जानकारी मिल जाती है। बाकी भावों की तुलना में जातक की आत्मा को जानने का यह सबसे महत्वपूर्ण भाव है। जातक की जन्मकुण्डली अथवा प्रश्नकुण्डली के किसी सवाल के जवाब में उसके स्वास्थ्य, जीवंतता, सामूहिकता, व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, आत्मप्रकाश, आत्मा आदि को देखा जाता है। हर सवाल के जवाब में पहले लग्न देखना ही होगा।
दूसरा भाव – इस भाव का कारक गुरु है। वैदिक ज्योतिष में इसे धन भाव कहा जाता है। इससे बैंक एकाउण्ट, पारिवारिक पृष्ठभूमि, कई मामलों में आंखें देखी जाती है। इसके अलावा यह संसाधन, नैतिक मूल्य और गुणों के बारे में बताता है।
तीसरा भाव – इस भाव का कारक मंगल है। इसे सहज भाव भी कहते हैं। कुण्डली को ताकत देने वाला भाव यही है। इसे आमतौर पर अनदेखा कर दिया जाता है, लेकिन भाग्य के ठीक विपरीत अपनी बाजुओं की ताकत से कुछ कर दिखाने वाले लोगों का यह भाव बहुत शक्तिशाली होता है। बौद्धिक विकास, साहसी विचार, दमदार आवाज, प्रभावी भाषण एवं संप्रेषण के अन्य तरीके इस भाव से देखे जाएंगे। छोटे भाई के लिए भी इसी भाव को देखा जाएगा।
चौथा भाव – इसका कारक चंद्रमा है। यह सुख का घर है। किसी के घर में कितनी शांति है इस भाव से पता चलेगा। इसके अलावा माता के स्वास्थ्य और घर कब बनेगा जैसे सवालों में यह भाव प्रबल संकेत देता है। शांति देने वाला घर, सुरक्षा की भावना, भावनात्मक शांति, पारिवारिक प्रेम जैसे बिंदुओं के लिए हमें चौथा भाव देखना होगा।
पांचवां भाव – इसका कारक गुरु है। इसे प्रॉडक्शन हाउस भी कह सकते हैं। इंसान क्या पैदा करता है, वह इसी भाव से आएगा। इसमें शिष्य, पुत्र और पेटेंट वाली खोजें तक शामिल हो सकती हैं। ईमानदारी से की गई रिसर्च भी इसी से देखी जाएगी। ईमानदारी से मेरा अर्थ है ऐसी रिसर्च जिससे विद्यार्थी अथवा विषय के लिए कुछ नया निकलकर आ रहा हो। इसके अलावा आनन्दपूर्ण सृजन, सुखी बच्चे, सफलता, निवेश, जीवन का आनन्द, सत्कर्म जैसे बिंदुओं को जानने के लिए इस भाव को देखना जरूरी है।
छठा भाव – इस भाव का कारक मंगल है। इसे रोग का घर भी कहते हैं। प्रेम के सातवें घर से बारहवां यानि खर्च का घर है। शत्रु और शत्रुता भी इसी भाव से देखे जाते हैं। कठोर परिश्रम, सश्रम आजीविका, स्वास्थ्य, घाव, रक्तस्राव, दाह, सर्जरी, डिप्रेशन, उम्र चढ़ना, कसरत, नियमित कार्यक्रम के सम्बन्ध में यह भाव संकेत देता है।
सातवां भाव – इसका कारक शुक्र है। लग्न को देखने वाला यह भाव किसी भी तरह के साथी के बारे में बताता है। राह में साथ जा रहे दो लोगों के लिए, प्रेक्टिकल के लिए टेबल शेयर कर रहे दो विद्यार्थियों के लिए, एक ही समस्या में घिरे दो साथ-साथ बने हुए लोगों के लिए यह भाव देखा जाएगा। जीवनसाथी, करीबी दोस्त, सुंदरता, लावण्य जैसे विषय इसी भाव से जुड़े हुए हैं। सभी विपरीत लिंग वालों के लिए। समलैंगिकों को कैसे देखेंगे यह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन कभी ऐसी कुण्डली आती है तो मैं दोनों का सातवां भाव ही देखने का प्रयास करूंगा।
आठवां भाव – इसका कारक शनि है। स्वाभाविक रूप से गुप्त क्रियाओं, अनसुलझे मामलों, आयु, धीमी गति के काम इससे देखे जाएंगे। इसके अलावा दूसरे के संसाधनों का सृजन में इस्तेमाल, जिंदगी की जमीनी सच्चाइयां, तंत्र-मंत्र के लिए यही भाव है।
नौंवां भाव – इसका कारक भी गुरु है। इसे भाग्य भाव भी कहते हैं। पिछले जन्म में किए गए सत्कर्म प्रारब्ध के साथ जुड़कर इस जन्म में आते हैं। यह भाव हमें बताता है कि हमारी मेहनत और अपेक्षा से अधिक कब और कितना मिल सकता है। धर्म, अध्यात्म, समर्पण, आशीर्वाद, बौद्धिक विकास, सच्चाई से प्रेम, मार्गदर्शक जैसे गुणों को भी इसमें देखा जाता है।
दसवां भाव – इसके कारक ग्रह अधिक हैं। गुरु, सूर्य, बुध और शनि के पास दसवें घर का कारकत्व है। हम जो सोचते हैं वही बनते हैं। यह भाव हमारी सोच को कर्म में बदलने वाला भाव है। हर तरह का कर्म दसवें भाव से प्रेरित होगा। बस बाध्यता इतनी है कि एक्शन हमारा होना चाहिए। रिएक्शन के बारे में यह भाव नहीं बताता। प्रोफेशनल सफलताएं, साख, प्रसिद्धि, नेतृत्व, लेखन, भाषण, सफल संगठन, प्रशासन, स्किल बांटना जैसे काम यह भाव बताता है।
ग्यारहवां भाव – इसका कारक भी गुरु है। यह ज्यादातर उपलब्धि से जुड़ा भाव है। आय, प्रसिद्ध, मान सम्मान और शुभकामनाएं तक यह भाव एकत्रित करता है। हम कुछ करेंगे तो उस कर्म का कितना फल मिलेगा या नहीं मिलेगा, यह भाव अधिक स्पष्ट करता है। यह कर्म का संग्रह भाव है। उपलब्धि किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। धैर्य, विकास और सफलता भी इसी भाव से देखे जाते हैं।
बारहवां भाव – इसका कारक शनि है। यह खर्च का घर है। हर तरह का खर्च, शारीरिक, मानसिक, धन और जो भी खर्च हो सकते हैं सभी इसी से आएंगे। विद्या का खर्च भी इसी भाव से होता है। इस कारण बारहवें भाव में बैठा गुरु बेहतर होता है ग्यारहवें भाव की तुलना में क्योंकि सरस्वती की उल्टी चाल होती है, जितना संग्रह करेंगे उतनी कम होगी और जितना खर्च करेंगे उतनी बढ़ेगी। इसके अलावा बाहरी सम्बन्धों, विदेश यात्रा, धैर्य, ध्यान और मोक्ष इस भाव से देखे जाएंगे।